हरिद्वार, संवाददाता। कांवड़ यात्रा के बीच श्रद्धा, सेवा और प्रेम का एक मार्मिक दृश्य हरिद्वार में देखने को मिला। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मोदीनगर से आई 28 वर्षीय आशा अपने दिव्यांग पति सचिन को कंधे पर बैठाकर मंदिरों के दर्शन करवा रही हैं। यही नहीं पति के स्वस्थ होने की कामना लेकर हरकी पैड़ी से गंगाजल भरकर पैदल वापस 170 किलोमीटर का सफर तय करने की भी ठान चुकी हैं। उनके साथ दो छोटे बच्चे भी हैं। सोमवार को पूरे परिवार ने सोमवार को दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना की। पिछले साल बीमारी के चलते सचिन अपने पसंदीदा कांवड़ मेले में शामिल नहीं हो सके थे। इस साल भी जब चलना-फिरना भी मुमकिन नहीं रहा, तो उनकी पत्नी आशा ने ठान लिया कि वह पति को कंधे पर बैठाकर हरिद्वार लेकर आएंगी और कांवड़ यात्रा पूरी कराएंगी।
सचिन ने बताया कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा है। वो करीब 15 वर्षों से हर साल कांवड़ लेकर हरिद्वार आ रहे थे लेकिन पिछले साल बीमार होने के कारण हरिद्वार नहीं आ सके। कांवड़ यात्रा न कर पाने का मलाल उन्हें सालभर रहा। इस बार भी शरीर साथ नहीं दे रहा था लेकिन पत्नी ने कहा कि वो कंधे पर बैठाकर हरिद्वार लेकर चलेंगी। वो आज खुद को सबसे भाग्यशाली समझते हैं। उनकी पत्नी आशा ने बताया जब उनके पति स्वस्थ थे तो हर बार कांवड़ लाते थे और पूरे परिवार को मंदिरों के दर्शन करवाते थे। अब जब वह नहीं चल सकते, तो उन्होंने ठान लिया कि उन्हें भगवान के दर्शन करवाकर ही लाएंगी। यही उनका धर्म और प्यार है।

मंदिरों में किया ध्यान आकर्षित, लोगों ने किया सम्मान
हरिद्वार के दक्षेश्वर महादेव मंदिर जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल पर यह जोड़ी पहुंची तो, श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। जहां कहीं भी आशा अपने पति को कंधे पर लिए दिखाई दीं, वहीं लोग नतमस्तक हो गए। कई श्रद्धालु इस जोड़ी के साथ सेल्फी लेते दिखाई दिए तो कई भावुक होकर उन्हें प्रणाम करते नजर आए।
170 किलोमीटर पैदल सफर की ठानी
आशा ने बताया कि वह गाजियाबाद तक पूरे रास्ते में पड़ने वाले शिवालयों में दर्शन करते हुए जाएंगी। उनका मानना है कि अगर आस्था सच्ची हो, तो भगवान खुद रास्ता बना देते हैं

प्रशासन ने भी जताई सराहना
स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने भी इस जोड़ी की सराहना करते हुए उन्हें मार्ग में हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया। यह कहानी सिर्फ एक दंपती की नहीं बल्कि एक ऐसी भावना की है जो त्याग, आस्था और समर्पण के सबसे पवित्र रूप को दर्शाती है। आशा ने अपने नाम को चरितार्थ करते हुए यह दिखा दिया कि जहां इच्छा और प्रेम हो, वहां कोई राह कठिन नहीं होती।