हरिद्वार, 6 अप्रैल। श्री अखंड परशुराम अखाड़ा के संयोजन में श्री बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार में आयोजित श्रीमद् देवी भागवत कथा के आठवें दिन की कथा श्रवण कराते हुए कथा व्यास भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि महामाया की आराधना के कितने ही आधार तत्व वेद-पुराण, स्मृति व उपनिषद् आदि ग्रंथों में हैं। लेकिन इन सब में श्री दुर्गा सप्तशती का विशेष मान है। इसे मातृ आराधना का सेतु कहा गया है। दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय से मातृ महिमा का विशद् वर्णन से ज्ञात होता है कि कोटि-कोटि देवताओं के दिव्यांश से मातृ देवी की उत्पत्ति हुई है। यही कारण है कि शक्ति, बल, शौर्य व महिमा में मां का नाम सबसे ऊपर है। देवी का मुख शिवशंकर के तेज से, बाल यमराज के तेज से, भुजाएं विष्णु के तेज से, दोनों चरण ब्रह्मा के तेज से और अंगुलियां सूर्य के तेज से प्रकट हुईं। हाथों की अंगुलियां वसुओं के तेज से, नासिका कुबेर के तेज से, दंत प्रजापति के तेज से, तीनों नेत्र अग्नि के तेज से, भवें संध्या के तेज से और कान वायु के तेज से प्रकट हुए। शरीर के बाद वस्त्र-आभूषण और श्रृंगार की चर्चा आई है। भगवान शिव से शूल, विष्णु से चक्र, वरुण से शंख, अग्नि से शक्ति, वायु से धनुष व वाण भरे दो तरकश, इंद्र से वज्र और घंटा, यमराज से दंड, वरुण से पाश, प्रजापति से स्फटिकाक्ष की माला से कमंडल प्राप्त हुआ। सूर्यदेव ने उनके रोमकूपों में किरणों का तेज भर दिया तो काल देवता ने उन्हें चमकती हुई ढाल व तलवार प्रदान की। क्षीर समुद्र ने हार और सदैव नवीन रहने वाले दिव्य वस्त्र प्रदान किए, कुंडल, कड़ा, नुपूर, हंसली व अंगूठियों से उन्हें श्रृंगारित किया। विश्वकर्मा ने निर्मल फरसा, अस्त्र व अभेद्य कवच तो जलधि ने सुंदर फूलों की मालाएं दीं। कुबेर ने मधु से भरा पात्र तो शेषनाग ने नागहार प्रदान किया। इस प्रकार मां दुर्गा सभी देवी-देवताओं के अंश से उत्पन्न और श्रृंगारित हैं। तभी तो वे सभी देवगणों में सर्वाधिक बलशाली हैं। देवी पुराण में अंकित है कि एकमेव देवी की आराधना से सभी देवता प्रसन्न होते हैं। देवी परम कल्याणकारी व महाशक्ति की स्वामिनी हैं। जिनकी कृपा से हरेक कार्य सहज व सरल रूप से सम्पन्न हो जाता है। शास्त्री ने रामनवमी की महिमा का भी वर्णन किया और सभी भक्तों ने मिलकर सुंदरकांड का पाठ किया। श्री अखंड परशुराम अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने बताया कि भगवान राम ने हमेशा मर्यादाओं का पालन किया। इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि प्रभु श्रीराम के पदचिन्हों पर चलने वाला ही राम भक्त कहलाने का अधिकारी है।

इस अवसर पर श्री अखंड परशुराम अखाड़े की और से प्रदेश सरकार में दायित्ववाधारी ओमप्रकाश जमदग्नि, पूर्व राज्यमंत्री डा.संजय पालीवाल व स्वामी आनन्द स्वरूप महाराज को सम्मानित भी किया गया।

मुख्य यजमान बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर के व्यवस्थापक सतीश वन महाराज, लाहू वन महाराज, भरत शर्मा, भावना शर्मा, ओमप्रकाश जमदग्नि, बृजमोहन शर्मा, यशपाल शर्मा, सचिन शर्मा, कुलदीप शर्मा, मानव शर्मा, सोमपाल कश्यप, ओमप्रकाश लखेड़ा, मनोज कुमार, सत्यम शर्मा, जलज कौशिक, शीतल उपाध्याय, मनोज कुमार, संजय शर्मा, सोनिया कौशिक, सुषमा शर्मा, सरोज शर्मा, दिव्या शर्मा, पूजा शर्मा, गीता कुमारी, जेपी बडोनी अनुराग अरोडा ,चद्र प्रकाश शर्मा,अभिषेक कुमार,ओमकार,आकाश , सरोज शर्मा, सुषमा शर्मा,विनिता शर्मा,आदि मौजूद रहे और व्यासपीठ का पूजन किया।