लक्सर, हरिद्वार। लक्सर में हुए निकाय चुनाव में बसपा के संजीव उर्फ नीटू चेयरमैन निर्वाचित हुए। यहां खुद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े प्रत्याशी ने भाजपा के कार्यकर्ताओं पर भीतरघात करने का आरोप लगाया। यहां भीतरघात हुआ भी लेकिन कार्यकर्ताओं की अनदेखी भी भाजपा को कहीं न कहीं भारी पड़ गई। वहीं कांग्रेस काउंटिंग में गड़बड़ी के आरोप लगा रही है।
टिकट फाइनल होते ही लगी थी इस्तीफों की झड़ी –
लक्सर में वैसे तो कई दावेदार थे जिन्होंने अध्यक्ष पद के लिए भाजपा से ताल ठोकी थी। आरक्षण बदलते ही भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित किया तो पार्टी के कई नेताओं ने बगावत कर दी। सबसे पहले भाजपा नेता शिवम् कश्यप ने अपने कई साथियों के साथ भाजपा छोड़ बसपा का दामन थाम लिया था।
बसपा का टिकट पाने में कामयाब हुए थे शिवम् कश्यप –
पार्टी छोड़ते ही शिवम् कश्यप ने न सिर्फ बसपा ज्वाइन की बल्कि टिकट पाने में भी सफलता हासिल की। हालांकि उनके डॉक्युमेंट्स में कमी होने के चलते, उन्होंने बड़ा दिल दिखाया और कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हुए संजीव उर्फ नीटू को टिकट देने की घोषणा कर डाली। शिवम ने न सिर्फ संजीव को टिकट दिलाया बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान भी उनके साथ मजबूती से खड़े रहे।

शिवम ने निभाई सारथी की भूमिका –
टिकट मिलते ही संजीव ने धुंआधार प्रचार किया। शिवम भी उनके विजय रथ पर सारथी की भूमिका निभाते रहे। डोर टू डोर प्रचार हो या जनसभाएं, हर वक्त शिवम कश्यप और विधायक मोहम्मद शहजाद उनके साथ रहे। कश्यप समाज के साथ साथ अन्य समाज को जोड़ने का काम किया। विधायक मोहम्मद शहजाद ने भी दलित और मुस्लिम वर्ग को साथ लेकर बसपा को मजबूत किया।
लक्सर में टूट गया मिथक –
पिछले कुछ चुनावों में यहां कई मिथक भी टूटे। पहले विधानसभा चुनाव में यहां से मोहम्मद शहजाद विधायक बने फिर बसपा से चेयरमैन बनकर संजीव उर्फ नीटू ने भी उस मिथक को तोड़ किया।

संजीव उर्फ नीटू ने भी दिया सम्मान –
चुनाव जीतने के बाद संजीव उर्फ नीटू ने भी शिवम कश्यप और उनकी टीम को पूरा सम्मान दिया। चुनाव जीतने के बाद शिवम कश्यप उनके विजय रथ पर खड़े दिखाई दिए। विजय जुलूस में संजीव उर्फ नीटू के साथ साथ शिवम ने भी लक्सर की जनता का आभार व्यक्त किया। जल्द ही शिवम कश्यप को बसपा में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। शिवम कश्यप का कहना है कि पार्टी को भी निर्णय लेगी, वो मान्य होगा।
कुल मिलाकर किसी भी राजनीतिक दल की रीढ़ उसके कार्यकर्ता होते हैं। चुनावी युद्ध में कार्यकर्ता ही सैनिकों की भूमिका निभाते हैं। अक्सर देखा गया है कि चुनाव में कार्यकताओं की नाराजगी प्रत्याशियों के साथ साथ पार्टियों पर भी भारी पड़ी है।