हरिद्वार, 26 अक्टूबर। अर्मेद्धकुंभ मेला 2025 की तैयारियों के तहत गंगा किनारे बन रहे घाटों में दरारें आने से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के विभागों के बीच तकरार शुरू हो गई है। करोड़ों की लागत से बन रहे इन घाटों के निर्माण में तकनीकी खामियां सामने आने के बाद अब जांच और जवाबदेही की मांग उठ रही है।
अर्द्धकुंभ के बजट से करीब दो किलोमीटर लंबे घाटों का निर्माण 42 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है। दरारें दिखने के बाद मेला प्रशासन ने दावा किया है कि घाटों की मुख्य आधार संरचना पूरी तरह सुरक्षित है। अधिकारियों का कहना है कि केवल लीन कंक्रीट में दरारें आई हैं, जो पानी छोड़े जाने के बाद की सामान्य प्रक्रिया है।
वहीं, उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि निर्माण से पहले न तो उनसे अनुमति ली गई, न ही डिजाइन पर राय मांगी गई। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक, डिज़ाइन में कई तकनीकी खामियां थीं। जिनके सुधार की सलाह दी गई थी, लेकिन निर्माण एजेंसी ने काम शुरू कर दिया। उनका कहना है कि कैनाल में बहुत कम पानी छोड़ा गया था। इसलिए दरारों का कारण पानी का दबाव नहीं हो सकता।
अर्द्धकुंभ मेला प्रशासन की ओर से जवाब आया कि परियोजना मानक प्रक्रिया और स्वीकृत डिज़ाइन के अनुसार चल रही है। अधिकारियों ने कहा कि “दरारें सतही हैं, संरचना में कोई खतरा नहीं है। मरम्मत कार्य शुरू कर दिया गया है।
इस बीच, समाजसेवियों ने पूरे मामले की तकनीकी जांच की मांग उठाई है। उनका कहना है कि करोड़ों रुपये की लागत से हो रहे घाट निर्माण में खामियां सामने आना गंभीर लापरवाही है। उन्होंने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। फिलहाल घाटों पर डैमेज कंट्रोल का काम शुरू हो गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब तैयारी कुंभ मेले जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन की हो, तो ऐसी तकनीकी चूक आखिर कैसे हुई? जिम्मेदारी किसकी तय होगी, निर्माण एजेंसी की, मेला प्रशासन की या सिंचाई विभाग की? यह जांच के बाद ही तय हो पाएगा।

