हरिद्वार। 2027 अर्पंद्धकुंभ मेले से पहले श्री चायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ संत अखाड़ा परिषद को लेकर मुखर हैं। अखाड़े के वर्तमान कोठारी महंत राघवेंद्र दास, महामंडलेश्वर रूपेंद्र प्रकाश और महंत सूर्यअंश मुनि द्वारा अखाड़ा परिषद को फर्जी संस्था बताने के बाद साधु-संतों में नई चर्चा छिड़ गई है। बड़ा सवाल यह है कि जब यही अखाड़ा परिषद पहले सही थी, उसी पर भरोसा कर अपने ही अखाड़े के पदाधिकारियों को हटाने की कार्रवाई करवाई गई थी, तो आज अचानक वह फर्जी कैसे हो गई?

सूत्र बताते हैं कि कुछ समय पहले बड़ा अखाड़ा के वर्तमान पदाधिकारियों ने ही अखाड़ा परिषद को लिखित रूप में आवेदन भेजकर महंत रघु मुनि महाराज, अग्रदास महाराज और दामोदर दास महाराज को हटाने की मांग की थी। इसी आवेदन पर अखाड़ा परिषद ने प्रस्ताव पास करके तीनों संतों को पद से हटाया भी था। तब वर्तमान पदाधिकारियों ने परिषद के निर्णय को सही ठहराया था। लेकिन अब वही परिषद फर्जी संस्था बताई जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर परिषद फर्जी है तो उस समय उसका प्रस्ताव कैसे मान्य था? क्या अब वह प्रस्ताव स्वतः ही निरस्त मान लिया जाए? यदि ऐसा है, तो जिन संतों को उस प्रस्ताव के आधार पर हटाया गया था, वे सभी अपने पदों पर पहले की तरह सही और वैध माने जाएंगे। चर्चा है कि बाहर किए गए संत अब कानूनी रास्ता भी अपना सकते हैं, क्योंकि जिस परिषद के माध्यम से उन्हें हटाया गया, उसी को अब फर्जी कहा जा रहा है।

कई संतों का कहना है कि यह परिस्थिति स्वयं वर्तमान पदाधिकारियों ने ही उत्पन्न की है। पहले उन्हीं ने रघु मुनि महाराज और अन्य संतों पर अखाड़े के विरुद्ध कार्य करने के आरोप लगाकर अखाड़ा परिषद से कार्रवाई की मांग की थी। अब वे ही परिषद के अस्तित्व पर सवाल उठाकर पूरे मामले को उलझा रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि पूर्व में परिषद का जो निर्णय लिया गया था, उसकी अब कोई अहमियत नहीं बचती।
साधु संतों में यह भी चर्चा है कि बाहर किए गए संत अब अखाड़े में अपनी वापसी का दावा कर सकते हैं। खास बात यह है कि उनकी वापसी का आधार भी उन्हीं संतों के बयान बन रहे हैं, जिन्होंने उन्हें हटवाया था। उधर, जब सरकार 2027 के अर्धकुंभ को पूर्ण कुंभ की तर्ज पर भव्य रूप देने की तैयारी में जुटी है, तब अखाड़े के वर्तमान पदाधिकारियों की ओर से अखाड़ा परिषद और व्यवस्था पर सवाल उठाना कई तरह की शंकाएं पैदा कर रहा है। साधु-संतों का कहना है कि ऐसे विवाद मेले की तैयारियों और आंतरिक व्यवस्था दोनों पर असर डाल सकते हैं। संत समाज अब इस पूरे मामले पर अखाड़ा परिषद की अगली प्रतिक्रिया और संभावित कानूनी कदमों का इंतजार कर रहा है।

