हरिद्वार, 31 अक्टूबर। उत्तराखंड राज्य स्थापना के रजत जयंती उत्सव के दूसरे दिन रोड़ी बेलवाला मैदान में आयोजित भव्य सांस्कृतिक संध्या पूरी तरह लोक-संस्कृति के रंग में रंगी दिखाई दी। देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत और लोकधुनों का अनोखा संगम तब देखने को मिला, जब मंच पर उत्तराखंड के सुर सम्राट, गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी धुनों से महफ़िल को ऊंचाई पर पहुंचा दिया। कार्यक्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहे और उन्होंने कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।

कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक वाद्य-यंत्रों की प्रस्तुति के साथ हुआ, जिसके बाद नेगी जैसे ही मंच पर आए, पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उनकी मधुर आवाज़ और पहाड़ी धुनों ने ऐसा असर छोड़ा कि माहौल रोमांच और भावनाओं से भर गया। नेगी ने अपनी लोकप्रिय रचनाएं ‘त्रियुगी नारायण’, ‘ठंडो रे ठंडो मेरे पहाड़ों का पानी ठंडो’, ‘ऐजा मेरी जा हो’ और अन्य पहाड़ी गीतों की प्रस्तुति दी। हर गीत पर दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता था। महिलाएं, पुरुष, युवा और बच्चे—सभी गीतों की ताल पर थिरकते दिखे। कई दर्शक धुनों के साथ झूमते हुए मोबाइल फ्लैश जलाए नजर आए, जिससे माहौल और भी मनमोहक बन गया।

मुख्यमंत्री धामी नेगी की प्रस्तुति के दौरान दर्शकों के बीच पहुंचे और राज्य स्थापना की 25 वर्ष की यात्रा का स्मरण करते हुए कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति, संगीत और परंपरा राज्य की सबसे बड़ी धरोहर है। उन्होंने कहा कि सरकार पहाड़ी कला, भाषा और संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने नरेंद्र सिंह नेगी को देवभूमि का गौरव बताते हुए कहा कि उनका योगदान उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले गया है।
नेगी की प्रस्तुति के बीच-बीच में दर्शकों ने तालियों और जयकारों के साथ उनका स्वागत किया। कई दर्शक दूर-दूर से सिर्फ उनकी प्रस्तुति देखने पहुंचे थे। जैसे ही उन्होंने भावपूर्ण गीतों की धारा बहाई, हरिद्वार के मैदान में पहाड़ों की वादियों और लोक भावना का एहसास हो उठा। पारंपरिक डमरू, हुड़का, बांसुरी और ढोलक की थाप ने लोक-संगीत को और भी जीवंत बना दिया।

